जय दादा रावण की

जय दादा रावण की

राजा रावण मंडावी रामायण का एक प्रमुख प्रतिचरित्र है। रावण लंका का राजा था । वह अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था, जिसके कारण उसका नाम दशानन (दश = दस + आनन = मुख) भी था परंतु आदिवासी सभ्यता के अनुसार दशानन मतलब राजा। किसी भी कृति के लिये नायक के साथ ही सशक्त खलनायक का होना अति आवश्यक है। किंचित मान्यतानुसार रावण में अनेक गुण भी थे। सारस्वत ब्राह्मण पुलस्त्य ऋषि का पौत्र और विश्रवा का पुत्र रावण एक परम भगवान शिव भक्त, उद्भट राजनीतिज्ञ , महाप्रतापी, महापराक्रमी योद्धा, अत्यन्त बलशाली , शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता, प्रकान्ड विद्वान, पंडित एवं महाज्ञानी था। रावण के शासन काल में लंका का वैभव अपने चरम पर था और उसने अपना महल पूरी तरह स्वर्ण रजित बनाया था, इसलिये उसकी लंकानगरी को सोने की लंका अथवा सोने की नगरी भी कहा जाता है। रावण का विवाह मंदोदरी से हुआ । मान्यता है कि मंदोदरी का जन्म मध्यप्रदेश के मंदासौर जिले में हुआ था । वहां पर आज भी महाराजा रावणजी को पुजा जाता है वहा आज भी रावण की चावरी है, जिस जगह पर रावण का विवाह हुआ था ।